तुम्हे घर साफ़ करते देख काफी कष्ट होता था। तुम हाँफते थे, पसीने से तरबतर होते थे। इसलिए कोई दोस्त कभी घर नहीं आया। मैंने दोस्त कम ही बनाये। शायद मैं आदि हूँ अकेलेपन का। इसीलिए जब कहते हो यह तुम्हारे घर आएगा, वह तुम्हारे घर घुसेगा, तो समझ में आता है! यह समझ में आता है कि उस बचपन का अकेलापन आज भी जारी है, उसी तरह। शायद तुम चाहते हो कि मेरा ख्याल कोई न रखे, या कोई मुझसे बात न करे, एक तुम्हारा ही हक़ । शायद तुम मुझे जीवन भर के लिए अकेला कर देना चाहते हो!
तुम ऐसा चाहते हो, क्योंकि मेरे जीवन साथी चुनने पर तुम्हे आपत्ति थी। उफ़! कौन कौन सी बातें तुमने न कही। मैंने तो स्कूल में यही सीखा कि हम सबका खून लाल ही होता है, फिर यह फ़र्क़ कैसा। यह जातपात कैसी? म्लेच्छ समाजों कि तरह क्यों सोचा तुमने? आज भी उन दिनों कि सोच से रोम रोम सिहर जाता है।
तुम न कहते हो कि मेरे दिमाग कि नसें ढीली हैं। या फिर मेरी खोपड़ी उलटी है। ऐसा तुम कई सालों से कहते आये हो। फिर बुरा क्यों लगता है जब कोई मुझे मंदबुद्धि कहता है ? शायद सभी को मुझे मंदबुद्धि कहने का अधिकार हो जाए इसीलिए तुम बार बार सबके सामने ऐसा कहते हो? या यह फिर यह कोई अभिनय है?
तुमने शायद समझा कि तुम्हारा ताना मैंने बूझा नहीं। उसी समय समझ में आ गया था। अंतरजाल पर जाने के लिए सरकारी सामान का प्रयोग करूं या गैर सरकारी, इससे तुम्हे तो कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। पर फिर भी तुम बोले। तुम्हे तो अंतरजाल पे जाना आता ही नहीं, फिर बोलने कि होड़ क्यों थी? क्यों यह ज़ाहिर करते हो बार बार कि मेरे पास एक साधारण गैर सरकारी महाविद्यालय कि नौकरी है और तुम्हारे पास कोई है जो सरकारी अफसर है। उस अफसर को सलाम है। उस अफसर ने मेहनत की है। सम्भवतः मैंने मेहनत नहीं की। परन्तु ये बार बार कहना?
अब तुम्हारे ताने तो मेरे खाने तक पहुँच गए। कितना कुछ जो पसंद था, छोड़ दिया मैंने। लो मैंने अब तो आलू के परांठे भी छोड़ दिए। तुमने धीरे धीरे मेरे पसंद कि सारी चीज़ें ले ली। आज तुम मेरे साँसों तक पहुंचे हो, कल क्या मेरे गले तक पहुंचोगे?
मेरी तमन्ना है कि मैं तुमसे पहले जाऊँ। समझो तो आखिर कि मेरे बिना दुनियाँ कैसी है? खूबसूरत ही होगी शायद !
--निशा
1 comment:
That is an ideal letter that every person needs to read from his/her beloved ones. Well the words are strong enough to produce warmth in the heart of the lover.
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