Tuesday, December 27, 2011

प्रजातंत्र



बाबासाहेब अम्बेडकर जी ने जब भारत के संविधान की रचना की थी, तब संभवतः उन्होंने सोचा भी न होगा की "प्रजातंत्र" शब्द का इस प्रकार दुरुपयोग हो सकता है. हमारे देश में आज का प्रजातंत्र अल्पसंख्यकों की राजनीति, महासख्यकों की कुटाई और धनाढ्यों की वाहवाही के खेल का मैदान है. आज हमारा देश वही चला सकता है जो दो या अधिक गुटों में लड़ाई करवा के मेवा खाने की हिम्मत रखता हो. आज हमारा देश वही चला सकता है जो अपने दामन को बचाकर दूसरों के कन्धों पैर बन्दूक रखने की हिम्मत रखता हो. आज हमारा देश वही चला सकता है जो प्रजातंत्र के नाम पे प्रजा को गुमराह कर मजा लूट-ता हो.  

कुछ ऐसा ही हो रहा है हमारे इस देश में जगह जगह पर. मैं संसद का अपमान नहीं करना चाहूँगा, इसीलिए किसी मंत्री, संत्री की बात नहीं करूंगा. तो आइये यंत्रियों की बात करते हैं, अभियाँत्रिकों की बात करते हैं. एक अभियांत्रिक था, सत्येन्द्र दुबे... जिसके बारे में कहते कहते उनके शिक्षकों की आँखें नम हो जातीं हैं. हाल ही में आई आई टी कानपुर के गोल्डेन जुबिली समारोह में जब सत्येन्द्र जी का उल्लेख हुआ, तो उनके शिक्षक फफक कर रो पड़े. 

और आज की बात है २०११ में जब किसी तेल कंपनी से निकले हुए हताश अधिकारी श्रीमान रोली पोली इसी प्रजातंत्र का हवाला देते हुए, दिन में १६ घंटे से अधिक काम करने वालों के मक्खन एवं दूध बंद करवा देते हैं. वही श्रीमान रोली पोली कडाके की ठण्ड में अपने कमरे पर ब्लोवर का सेवन करते हैं, और बाहर ठिठुरते कर्मचारियों को धमकाते हैं की "लकड़ियाँ ले गए तो मैं ऊपर शिकायत कर दूंगा, तुम लोगों को नौकरी से निकलवा दूंगा!" सुनने में आ रहा है की श्रीमान रोली पोली अपना काम छोड़कर अब राजा का पद सँभालने की तैयारी कर रहे हैं. मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने प्रजा की बात मानकर और हारकर अपनी पत्नी को राज्य से निष्काषित कर दिया था, और यहाँ भावी राजा अपना उल्लू सीधा करने की बात कर रहे हैं. 

अब बात करते हैं श्रीमान झंडूलाल बनारसी के सम्बन्ध में. श्रीमान बनारसी बिन पेंदे के लोटे हैं, अर्थात गंगा गए तो गंगा दास और यमुना गए तो यमुना दास. जब तक उनका नाम हर काम में न हो, तब तक उन्हें चैन नहीं पड़ता, उन्हें चाहे इसके लिए कोई कुकर्म ही क्यों न करना पड़े. इसी कारण वे झंडू भी हैं. उन्हें उनका खेल ४०० लोगो के पेट एवं ४० लोगो के रोजगार से भी अधिक प्रिय है. २-३ वर्ष पूर्व जब श्रीमान बनारसी के शराबी मित्र प्रजातांत्रिक चुनाव हार गए थे, तब उनके और उनके मित्रों के मुख से वचन कटु आ रहे थे!  

ततैया तोप के बारे में क्या कहने! उनको अंग्रेजी और हिंदी तो छोड़ ही दीजिये अपनी मातृभाषा भी ठीक से नहीं आती. ऐसे व्यक्ति जब एक शब्द में खाने के गुणवत्ता का कारण पूछते हैं, तो श्रीमान बनारसी के कान अपने आप खड़े हो जाते हैं. और हाय रे मिलिट्री पुत्र! अपनी बात तो ठीक से कह न सके और राजा का सिंघासन भी गवां बैठे. प्रजातंत्र जो ठहरी हमारी अभियांत्रिक जनता! 

जनता को संभालना होगा और अपनी आँखें खोलनी होंगी. विशेषकर निरी चंडूखाने की गप्प छोड़कर अपने तीसरे नेत्र को खोलना होगा. वरन वोह दिन दूर नहीं जब हम कहने को मजबूर होंगे: "जब हर शाख पे उल्लू बैठा है तो अंजाम-ए गुलिस्तान क्या होगा?"


Monday, December 26, 2011

त्रिया चरित्रं




"त्रिया चरित्रं, पुरुषस्य भाग्यम, देवौ ना जानाति कुतो मनुष्यः"


अर्थात स्त्री के चरित्र और पुरुष के भाग्य के सम्बन्ध में तो देवों को भी नहीं पता है, मनुष्य क्या चीज़ है. बचपन से ही इस श्लोक को सुनते आ रहे हैं हम! मुझे ऐसा आभास था की संभवतः यह श्लोक स्त्री के चरित्र पर लांछन है, परन्तु हाल ही में हुए कुछ विशेष घटनाओं ने मेरे इस आभास को गलत प्रमाणित किया.


चलते हैं २-३ वर्ष पहले हुई घटना पर. सुश्री सोनल मान सिंह जी कानपुर में आयीं हुईं थीं. स्पिक - मेकै के विरासत कार्यक्रम के परिप्रेक्ष्य में किदवईनगर  स्थित विद्यालय में उनका कार्यक्रम होना था. कार्यक्रम के आरम्भ में ही उन्होंने ऐसी कुछ बातें कहीं जिन्होंने मुझे झकझोर कर रख दिया. जो उन्होंने कहा उसका एक उद्धरण यहाँ प्रस्तुत है - "... आप सभी ने सुना होगा की भगवान् श्री राम ने वन में जाकर एक पत्थर पर अपने चरण धरे. कुछ ही क्षणों में वह पत्थर एक नारी के रूप में बदल गया. वह नारी देवी अहिल्या थी!" फिर उन्होंने हम सभी से प्रश्न किया "...लेकिन यह सोचिये की जिस भगवन श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है, क्या वे कभी भी किसी नारी के ऊपर पैर रखेंगे?" समस्त दर्शकगण निस्तब्ध थे! फिर उन्होंने स्पष्ट किया "... वाल्मीकि रामायण में उल्लेख है की देवी अहिल्या ब्रह्म ज्ञानी थीं. जब इन्द्र उनसे मिलने आये थे तब अहिल्या ने उनको पहचान लिया था. संस्पर्श हुआ, और गौतम ऋषि भी क्षुभ हुए. परन्तु एक ब्रह्म ज्ञानी नारी को गौतम ऋषि भी श्राप नहीं दे सकते थे. उन्होंने कटु वचन कहे. कटु वचन सुनकर देवी अहिल्या ने क्रोध में एक पत्थर का रूप धारण कर लिया. जब श्री राम आये तो उन्होंने पत्थर को प्रणाम किया, तब देवी अहिल्या प्रकट हुईं" देवी अहिल्या के ब्रह्म ज्ञानी होने का उल्लेख ना जाने क्यों, वर्तमान ग्रंथों में नहीं मिलता. संभवतः नारी का सम्मान करना हम भूल गए हैं.


अब वर्तमान के कुछ घटनाओं पर हम ध्यान केन्द्रित करते हैं.


  1. कलर्स चैनल पर बिग बॉस नामक धारावाहिक प्रतिदिन दर्शाया जा रहा है. इस कार्यक्रम के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए कार्यक्रम का वेबसाइट देखें. इस कार्यक्रम एक प्रतिभागी श्री आकाशदीप सहगल, जो स्काई वाकर के नाम से जाने जाना पसंद करते हैं, ने एक अन्य प्रतिभागी सुश्री महक चहल के व्यक्तिगत जीवन के सम्बन्ध में कुशब्द कहे (विडिओ Youtube पर देख लें). इन कुशब्दों के साथ यह भी कहा की "तू गन्दी औरत है". हम जब अकसर किसी महिला को गन्दी औरत कहते हैं, तो संभवतः हमारा संकेत उसकी चरित्र पर होता है. संभवतः हम यह भी कहना चाहते है की उस महिला को अपने यौनेच्छा पर नियंत्रण नहीं है, एवं वह महिला अपने इस इच्छा की प्रतिपूर्ति करने हेतु किसी भी पुरुष अथवा साधन का सहारा ले सकती है. किसी महिला के यौनेच्छा पर टिपण्णी करने का अधिकार किसी पुरुष को है? क्या कोई पुरुष अपने यौनेच्छा पर नियंत्रण रख सकता है? यदि नहीं तो क्या वो "गन्दा पुरुष" नहीं हुआ? क्या कारण है की हम "गन्दी महिला" या "गन्दी औरत" की परिकल्पना तो कर सकते हैं, परन्तु एक "गंदे पुरुष" की नहीं? 
  2. हाल ही में किसी नामी महाविद्यालय के एक छात्रा ने आत्महत्या करने का प्रयास किया. मैं आत्महत्या के प्रयास करने का कारण तो नहीं जानता, परन्तु उस के पश्चात जो घटनाएं हुईं उनपे प्रकाश डालना चाहूँगा. कुछ दिनों पहले ही उस महाविद्यालय से निकाले गए छात्र ने उस छात्रा से दूरभाष से संपर्क किया और कहा की "तू इसका सारा इल्जाम महाविद्यालय के नियमों पर लगा दे!" इसके कुछ दिनों पश्चात किसी एक छात्र ने एक वेबसाइट पर उस छात्रा के नाम का खुलासा करते हुए उसके सम्बन्ध में गन्दी गन्दी बातें लिखी. यह वेबसाइट घटना के लगभग १ वर्ष बाद बनायीं गयी.  आत्महत्या के प्रयास की घटना हुई, और उसके एक वर्ष बाद वेबसाइट बना. यह कैसा जाल, और यह कैसी चाल? गलती किसकी? लड़की की या फिर किसी चोट खाए हुए और बिलखते हुए आत्मा की? अब यदि लड़की शादी करती है तो उसके वैवाहिक जीवन पर क्या असर होगा?
  3. आई आई टी कानपुर के हॉल ४ की बात पर मैं आना चाहूँगा. घटना का पूर्ण उल्लेख करना अनावश्यक है, परन्तु किसी कारण वश हॉल ४ में काम कर रहे एक महिला पर दुश्चरित्र होने का आरोप लगा. उनका दोष मात्र इतना था की उन्होंने हॉल ४ के मेस कर्मचारियों के शौचालय का उपयोग किया था (यहाँ यह कहना आवश्यक है की हॉल ४ में महिलाओं अथवा महिला कर्मचारियों के लिए कोई शौचालय उपलब्ध नहीं है). तो क्या महिला शौचालय भी न जाए? क्या नारी होने की यह व्यथा भी झेलनी होगी? ऊपर से हॉल ४ के महान मेस प्रबंधक महोदय ने टिपण्णी की: "सर मैं तो 100% गारंटी लेने को तैयार हूँ. वो औरत तो ऐसी ही है!" "ऐसी ही है" अर्थात वो दुश्चरित्र है! यहाँ बताना उचित होगा की हॉल - ४ के लगभग सभी छात्रों ने मेस प्रबंधक के इस आचरण की निंदा की!
उपरोक्त सभी घटनाओं को देखकर तो यह प्रतीत होने लगा है की स्त्री के चरित्र के सम्बन्ध में वर्तमान में बहुत सारे  व्यक्ति जानकारी रखते हैं या रखने लगे हैं. एक स्त्री की सोच क्या है यह तो वो ही जाने, क्या यह लोग अपने आप को भगवान् बनाने के प्रयास में लगे हैं?  



इस चर्चा के पश्चात इस निष्कर्ष पर पहुंचना आसान है की किसी स्त्री के चरित्र पर वार करना एक सामाजिक कुरीति एवं खेल हो गया है. चूंकि महिलाएं अब पढ़ लिखकर लड़कों से टक्कर लेने में कुशल हो चुकीं हैं, इसी कारण संभवतः एक भय पुरुषों के मन में घर कर गया है. आखिर कब तक यह कुरीति चलती रहेगी? आखिर कब तक पुरुष स्त्रियों के चरित्रों की गारंटी लेते रहेंगे? आखिर कब तक यह विश्वास समाज में जारी रहेगा की जब एक नारी किसी पुरुष से बात कर रही हो, तो वो अपनी उपलब्धता उस पुरुष को बता रही है?