Sunday, January 12, 2014

चुप्पी


आज खुश तो बहुत होगे तुम ! लो चुप्पी ठान ली मैंने ! तुम्हारे रोज रोज के ताने, तुम्हारे रोज रोज के शक़।  तुम्हारे हर बात में यह ठहराना कि मैं हर मायने में गौण हूँ। त्रस्त हूँ पर फिर भी चुप हूँ। ह्रदय पे बोझ है तो क्या हुआ? चेहरे पे झुर्रियाँ बढ़ रही है तो क्या हुआ ? दिन-ब-दिन सिर के बाल सफ़ेद हो रहें हैं तो क्या हुआ? तुम्हारी ख़ुशी तो जरूरी है ना?

तुम्हारी बात को ठुकराई तो तुम बात करना बंद कर दोगे, खाना नहीं खाओगे, ताने मारोगे! जानते हो, तुमसे बात करने से पहले चिंता होती है कि आज कौन कौन सी गालियाँ सुनने को मिलेंगी? तुमसे बात करने से पहले अपने ह्रदय को पुख्ता कर लेना होता है कि कहीं तुम्हारी चुभने वाली बातें मेरे कोमल मन को चोटित न कर दे। तुम्हे मुझे चोटित कर कौन सी ख़ुशी मिलती है?
किसी को एक्सपीरियंस या तजुर्बा होने पर वो सही नहीं हो जाता।  तजुर्बा उन लोगों या समाजों तक सीमित होतीं हैं जिनसे तुमने चर्चा या विचारों का आदान प्रदान किया हो।  किसी बंद कमरे में बैठकर लोगों के सम्बन्ध में अंधी राय बना लेना और उसी राय पर विश्वास करने लगना मात्र बेवकूफी कि निशानी है।  तुम बार बार कहते हो न "मुझे थर्टी इयर्स का एक्सपीरियंस है"! यह मात्र एक छलावा है जिसमें तुमने अपने आप को फंसा लिया है।  ऐसी बातें सिर्फ हास्यात्मक कार्यक्रमों तक ही सीमित होती हैं।

कभी पतंग को उड़ाया है तुमने? जब कोई पतंग उड़ती है तो उसकी डोर को पहले खींचते हैं, फिर ढील देते हैं। ऐसा करते करते पतंग उड़ने लगता है।  लेकिन इंसान पतंग नहीं होते।  ऐसा करने से इंसान उड़ता नहीं, कन्फ्यूज़ ज्यादा हो जाता है।

चिड़िया उड़ का खेल
याद है बचपन में वो खेल हुआ करता था - चिड़िया उड़? किस तरह किसी खिलाडी के द्वारा गलती करने पर उसे मार पड़ती थी? उस मार से तो चलो आदमी बच के निकल भी जाए, तुम्हारी चुभने वाली बातों के मार से कौन बचेगा या बचाएगा। कुछ कहने लगेंगे तो फिर वही खाना बंद, बातें बंद| लो अब अमूल मक्खन कि मालिश करो चार दिन तक! झूठी माफ़ी भी मांगो, चाहे गलती की हो या नहीं!

इसीलिए अब मैंने चुप्पी साध ली। खुश रहो तुम! काश कि तुम ऐसे ही खुशियां मनाते रहो, मुझे दुःख पहुंचाते रहो, और मेरे मुँह से आह तक न निकले! एक जीवित लाश में परिवर्तित कर दिया है तुमने! मुबारक हो! एक नयी कठपुतली मुबारक हो!

-- निशा 




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